दुष्ट सकल नित मोहि सतावै । भ्रमत रहे मोहि चैन न आवै॥ काशी में जाके विराजे देखो तीनो लोक के स्वामी किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥ सहस कमल में हो रहे धारी। कीन्ह परीक्षा तबहिं पुरारी॥ श्री गणेश गिरिजा https://ngkwinbet79023.wonderkingwiki.com/1018199/an_unbiased_view_of_shiv_chalisa_lyricsl